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अंदाजे बयां: अजमेर के पंडित:रघु के हाथों खंडित - सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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July 29, 2019

अजमेर के पंडित:रघु के हाथों खंडित


                 *-सुरेन्द्र चतुर्वेदी*


 सौभाग्य से मैं भी पंडित हूँ। रघु शर्मा की तरह। फ़र्क़ सिर्फ़  इतना है कि वो राजनीति के पंडित हैं, मैं पत्रकारिता का ।रघु शर्मा और मैं दोनों ही राजस्थान विश्वविद्यालय में सहपाठी थे।में मानता हूँ कि  वह बहुत ही शानदार पंडित हैं।हाँ ,मगर जब  उन्हें हमने राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष बनवाया तब वे इतने शानदार पंडित नहीं थे जितने अब हो गए हैं ।कोई ज़माना था जब मैं उनका ख़ास किस्म का काल खण्ड कोष  हुआ करता था। अब नहीं हूँ। दरअसल उन्हें ऐसे पंडित पसंद हैं जो उनके कुर्ते पजामे की सफ़ेदी को चमकाए रखने में उनकी मदद करें।उनका ध्यान रखें। मगर मैं तो ऐसा पंडित हूँ जो नेताओं के ढीले होने वाले पजामों के नाडों पर  नजर रखता हूँ।वो भी सी .सी.टी.वी कैमरों की तरह।पंडितों का ये अवगुण (गुण) रघु शर्मा जी को पसंद नहीं। वह पंडितों को अपने अस्तबल का घोड़ा बनाए रखना चाहते हैं, और मैं किसी भी हालत में उनका घोड़ा नहीं बन सकता ।इसके लिए हमारे जे.पी. दाधीच ही बहुत हैं।

      भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी ने पंडितों को लेकर पता नहीं क्या कहा था कि कुछ पंडित उनसे  नाराज हो गए।  उन्हें सबक सिखाने के लिए  उन्होंने अपनी चोटी पर गाँठ बांध ली थी। पंडितों की चोटी के समस्त केस अभी भी बंधे  हुए हैं मगर देवनानी जी के समस्त बाल अभी भी खुले हुए हैं और समय-समय पर काटे जाने के बावजूद दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की भी कर रहे हैं ।कोई पंडित उनका किसी भी तरह का बाल टेड़ा नहीं कर पाया। 

     हम पंडितों की सबसे बड़ी बात यह है कि हम वक्त आने पर अपनी नीयत के हिसाब से फ़ैसला लेते हैं ।हमारा हित नहीं साधा जाता तो हम तो कुपित मुद्रा में आकर  शाप देने को आतुर हो जाते हैं। श्राप देने के बाद हम समझ लेते हैं कि सामने वाला तबाह हो चुका है मगर सामने वाले का कुछ भी टेड़ा -मेडा नहीं होता ।पंडित रघु शर्मा इस सच्चाई को बचपन से ही जान गए थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीति में उनकी अहम भूमिका रही ।वे उनकी नीली आंखों वाले राजकुमार माने जाते थे।उनके कार्यकाल में उन्होंने जम कर  लक्ष्मी पूजन भी किया। बाद में पता नहीं किस बात पर वे गहलोत जी से नाराज़ हो गए ।शायद तब उन्होंने भी श्राप दिया होगा  सर्वनाश का.... फिर भी गहलोत  मुख्यमंत्री बन गए ।रघु शर्मा जी सचिन पायलट की जय जयकार करते हुए  उनके दम पर टिकट लेकर आ गए।गहलोत को दर किनार कर वो अजमेर के सांसद भी बन गए ।मगर अब..... वो पायलेटी रंग भूल कर गहलोतों की डूंगरी पर बैठ चुके हैं।    

         देवनानी जी से नाराज पंडित बलराम शर्मा और विप्र सुदामा ने  रघु शर्मा को अपना नेता मानकर उन्हें जिताने में कोई क़ान -कसर नहीं छोड़ी। नारियल का तेल लगाकर सब उनकी मांद यानी गुफ़ा तक में घुस गए।     

     हम पंडितों ने सोचा कि रघु शर्मा चुनाव जीतने के बाद हमें निहाल कर देंगे ।राजनीति में हमारी ढफली बजने लगेगी मगर हमारी ढफली तो नहीं बजी हाँ, ढफली की तरह हमारी ज़रूर बज गई।  हम नादान पंडितों ने ये नहीं सोचा कि राजनेता की कोई जाति नहीं होती। ज़रूरत के हिसाब से वह अपने आप को हर जाति में ढाल लेता है। रघु शर्मा जी ने भी अब व्यापक रूप धारण कर लिया है ।वे मंत्री हैं ।पंडितों से उनका कोई देना नहीं ।अभी हाल ही में मेरे  अपने छोटे भाई छोटे भाई एस.पी साहब (पुलिस वाले नहीं मित्तल जी )का ब्लॉग पढ़ा, जिसमें पंडित बलराम शर्मा की वेदना को भाव पूर्ण शब्दों में दर्शाया गया था ।

   अजमेर के कुछ पंडितों को लेकर वे रघु शर्मा जी से मिलने जयपुर गए ।पंडित रघु शर्मा ने उन्हें सुबह से शाम तक इंतज़ार में रगड़े रखा और रात को बलराम जी का जब सारा  बल निकल गया तब पंडितों के दल को बाबा बर्फ़ानी के  दर्शन बिना कराए ही लौट आए।अब वे पंडित रघु शर्मा को भांग पी पीकर कोस रहे हैं। हमारे अजमेर के पंडित उन्हें अब अपना नेता मानने को भी शर्म महसूस कर रहे हैं। बस यही बात है हम पंडितों में ।ज़रा सी बात पर हम चोटी पर गांठ बांध लेते हैं।

       रघु शर्मा को अब मैं जातिवाद से ऊपर उठ गया नेता मानता हूँ।उन्हें ब्राह्मणों से क्या लेना देना मगर अपनी जाति के लोगों को वो  प्यार नहीं करते... उनकी मदद नहीं करते...ऐसा मैं नहीं मानता।ज़रा देखिए ब्रह्म पुत्र जे.पी.दाधीच के लिए वे क्या नहीं कर रहे उनका वश चले तो वे पूरा आनासागर ...नावों का ठेका.....उनको सौंप दें....अभी भी वे अधिकारी देथा जी...कलेक्टर शर्मा जी के ज़रिए निगम आयुक्क्त चिन्मयी पर दवाब बनाये हुए हैं....मज़ेदार बात ये भी है कि लेडी सिंघम उनके दवाब में आ भी चुकी हैं।

     बलराम शर्मा से वह नहीं मिले तो नहीं मिले ।उन्हें इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। हम पंडित लोग तो दर्शन की भिक्षा मांगने की अभ्यस्त हैं। हमारी परंपरा है ।

     देखना हमारे नेता जी शर्मा फिर अगले चुनाव में हमारे पास आएंगे। ख़ुद आएंगे या राजनीति में अभी नाबालिग अपने  पुत्र शर्मा को आशीर्वाद दिलवाले आएंगे ।हमें फिर से उनके साथ खड़ा होना पड़ेगा। बलराम शर्मा जी ,सुदामा जी ,राजीव शर्मा जी ,संजीव चतुर्वेदी जी परशुराम की संतान कहलाने से कुछ नहीं होगा। कितने भी चौराहे बना लो ।परशुराम जी की मूर्तियां चौराहों पर लगवा लो। जब तक आप में परशुराम  जी नहीं उतरेंगे तब तक आप रघु शर्मा जैसे लोगों के लिए इस्तेमाल होते ही रहोगे। दो- दो कौड़ी के राजनेता आपको यूज एंड थ्रो करते रहेंगे। ठीक उसी निरोध की तरह जो सुरक्षा और सुविधा के चलते इस्तेमाल किया जाता है और बाद में धोकर प्रेस करके नहीं रखा जाता ।निरोध नहीं विरोध बनो। हाथ पसारना नहीं मुट्ठी तानना सीखो।परसुराम की संतान हो तो  धोखा देने वालों के गले में फूलों की नहीं जूतों की मालाएं पहनाना सीखो।

       नहीं तो वह हमारे नेता है। जैसे भी हैं उन्हें बर्दाश्त करो।


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