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March 6, 2019
नई दिल्ली. समय बचाने के लिए क्या अयोध्या विवाद को मध्यस्थ के पास भेजा जा सकता है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षकारों से मध्यस्थता पैनल के लिए बुधवार को ही नाम देने के लिए कहा है ताकि जल्द ही आदेश निकाला जा सके।
इससे पहले 26 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में मध्यस्थ के जरिए विवाद का समाधान निकालने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी गुंजाइश होने पर भी मध्यस्थ के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए।
कोर्ट और वकीलों के सवाल-जवाब
अनुवाद को जांचने का समय मांगा था
इससे पहले चीफ जस्टिस ने अयोध्या मामले से जुड़े दस्तावेजों की अनुवाद रिपोर्ट पर सभी पक्षों से राय मांगी थी। एक पक्ष की तरफ से पेश वकील राजीव धवन का कहना था कि अनुवाद की कापियों को जांचने के लिए उन्हें 8 से 12 हफ्ते का समय चाहिए। रामलला की तरफ से पेश एस वैद्यनाथन ने कहा कि दिसंबर 2017 में सभी पक्षों ने दस्तावेजों के अनुवाद की रिपोर्ट जांचने के बाद स्वीकार की थी। दो साल बाद ये लोग सवाल क्यों उठा रहे हैं?
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।
5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
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