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December 27, 2017
जब बच्चा पैदा होता है तो वह केवल इंसान होता है, मगर समाज उसे धर्म, भेद, पंथ, जाति आदि में बांट कर उसकी पहचान को संकीर्ण बना देता है। प्रकृति इंसानों में भेद करती है लेकिन भेदभाव नहीं करती। भेदभाव करना समाज ही सिखाता है। इस भेदभाव से ही लोगों में एक दूसरे के प्रति नफरत बढ़ रही है और हिंसा में बढ़ोतरी हो रही है।
ये उद्गार पुष्कर स्थित वैष्णव धर्मशाला में आयोजित जतन संस्थान के दो दिवसीय वार्षिक कार्यकर्ता शिविर के पहले दिन मंगलवार को समाजसेवी, नारीवादी और लेखिका कमला भसीन ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने जेंडर आधारित भेदभाव को समझाते हुए कहा कि संविधान ने सालों पहले कह दिया कि स्त्री और पुरुष समान है। समाज में आज भी महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग नियम है और उसी की परिणति है कि देश में अब तक 3.5 करोड़ लड़कियों को कोख में ही खत्म कर दिया गया। पितृसत्तात्मक समाज के चलते स्त्री-पुरुषों के अधिकारों में विभेद से पुरुषों ने जहां उत्तरोत्तर प्रगति की है। वहीं महिलाएं दबती चली गईं। महिलाओं के प्रति समाज के रवैये को परिभाषित करते हुए भसीन ने कहा कि किसी एक महिला को बुर्का पहनाने से अच्छा है कि उस बुर्के की सौ पट्टियां बनाकर पुरुषों की आंखों पर बांध दी जाए ताकि बुरी नजर से ही बचा जा सके। संस्थान के निदेशक डॉ. कैलाश बृजवासी ने राज्य के 12 जिलों से आये 200 से अधिक कार्यकर्ताओं का स्वागत करते हुए शिविर के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। संस्थान के निदेशक बृजवासी ने मुख्य अतिथि भसीन का अभिनंदन किया। सलमा शेख, गोवर्धन सिंह आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन ओम आर्य मनु और राजदीप सिंह ने किया। दिल्ली के समूह ने नुक्कड़ नाटक का मंचन किया तथा सांस्कृतिक संध्या में रंगारंग कार्यक्रम, क्विज, फैशन शो, रैंप वॉक, कव्वाली प्रस्तुत की गई।
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